'विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हाल में संसद में बयान दिया कि भारत नस्लवादी देश नहीं है। यह बात उन्होंने नोएडा में कुछ लोगों द्वारा एक नाइजीरियाई छात्र की पिटाई के संदर्भ में देश-विदेश में हो रही प्रतिक्रिया पर अपना पक्ष रखते हुुए कही। सुषमा जी वरिष्ठ राजनेता हैं, चालीस साल का उन्हें संसदीय अनुभव है, वे एक लोकप्रिय नेता भी हैं इसलिए वे कोई बात कहती हैं तो हमें उसे मान लेना चाहिए।
लेकिन क्या वास्तविकता वही है जो सुषमा स्वराज बता रही हैं या हम सच्चाई को जानते-बूझते भी उसे नकार रहे हैं। यह हमारी शुभेच्छा हो सकती है कि देश नस्लवाद से मुक्त हो किन्तु हाल की ही कुछ घटनाएं इस विचार पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं; और हाल की ही बात क्या, यह तो इतिहास सिद्ध है कि भारत एक वर्ग-विभक्त समाज है।
हमारे भीतर अपने को लेकर एक विचित्र किस्म का श्रेष्ठताबोध और साथ-साथ पवित्रताबोध है। दूसरे शब्दों में जितनी छुआछूत, जितना अपने-पराए का बोध, जितना 'हम' और 'वे' का विभाजन भारतीय समाज में है, वह शायद दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं है।'
(देशबंधु में 20 अप्रैल 2017 को प्रकाशित)
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